Description
इस किताब के मà¥à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¿à¥ž और मेरे लिये ये मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² नहीं था कि आधी सदी की लगà¤à¤— हर शब गà¥à¥›à¤°à¥‡ किसी वाक़िठया सानिहे की मà¥à¤•à¤®à¥à¤®à¤² या अधूरी तसà¥à¤µà¥€à¤° दिखा कर इस किताब को अलिफ़-लैला की हज़ार दासà¥à¤¤à¤¾à¤¨ बना देते। लेकिन दीपक जो इस किताब के मà¥à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¿à¥ž हैं उनका इरादा कà¥à¤› à¤à¤¬à¤¸à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥ˆà¤•à¥à¤Ÿ बनाने का था जिसमें वो रावी की शकà¥à¤² में उन लोगों से मिलवाना चाहते थे जिनका मेरी रातों से ज़रा कम-कम ही तअलà¥à¤²à¥à¥˜ रहा। कà¥à¤› ख़ानदान के अफ़राद, कà¥à¤› अहबाब, कà¥à¤› दोसà¥à¤¤, कà¥à¤› मà¥à¥™à¤¾à¤²à¤¿à¤«à¤¼à¥€à¤¨, लेकिन सच मानें जो मेरी रातों के गवाह रहे उनमें से ज़ियादातर लोग रà¥à¥™à¤¸à¤¤ हो चà¥à¤•à¥‡ हैं। ये किताब, बाज़ीचा-à¤-अतफ़ाल नहीं हिकायाते-हालात और हिकायाते-तजà¥à¤°à¤¬à¤¾à¤¤ है, मेरे हाफ़िज़े की दहलीज़ पर जो क़िसà¥à¤¸à¥‡ और वाक़िआत दसà¥à¤¤à¤• देते हैं वो à¤à¤•-दूसरे से मिलकर गडà¥à¤¡à¤®à¤¡à¥à¤¡ हो चà¥à¤•à¥‡ हैं , यह किसी puzzle की सी है। à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ गतà¥à¤¤à¥‡ से काटे हà¥à¤ बे-तरतीब टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¥‡, जो आधी सदी से गरà¥à¤®à¥€, सरà¥à¤¦à¥€, बारिश, धूप-छाà¤à¤µ जैसे अनाम और अनजान मौसमों से आà¤à¤–ें मिलाते-मिलाते बूढ़ा हो गया, या यूठकहिये कि इस किताब के ज़ियादातर काग़ज़ इतने à¤à¥€à¤— चà¥à¤•à¥‡ हैं कि इस पर मौजूद तहरीर पर लगाने को तैयार है, लेकिन इस किताब के लेखक की ज़िद ने इसे तरतीबवार बनाने की मà¥à¤•à¤®à¥à¤®à¤² कोशिश की है। दिलचसà¥à¤ªà¥€ का हलà¥à¤•à¤¾ सा दरीचा खोलने पर राहत इंदौरी की तसà¥à¤µà¥€à¤° को पहचानना आसान हो जाता है। मà¥à¤à¥‡ इस बात का à¤à¤¤à¤°à¤¾à¥ž है कि मैं उस तमाशे को à¤à¥€ दिखाने में कहीं-कहीं तक़लà¥à¤²à¥à¥ž बरत गया हूठजो तमाशा मेरे आगे होता रहा है। ये किताब पचास-साठके दशक की black and white फ़िलà¥à¤® की तरह है जिसमें कोई पहचानी हà¥à¤ˆ सी तसà¥à¤µà¥€à¤° कà¤à¥€ आवाज़ खो बैठती है और कà¤à¥€ चीख़ पड़ती है, मेरी ख़à¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¶ है कि लोग इस तसà¥à¤µà¥€à¤° को पहचानें जिसे बनाने में उसकी कोई कोशिश नहीं जिसकी तसà¥à¤µà¥€à¤° है… मैं चाहता हूठकि लोग इसे कोई नाम दें ताकि पता चल सके कि मैं कहाठदफ़à¥à¤¨ हूअ – राहत इंदौरी
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