Description
‘‘सुख-दुख की धीमी आँच जिन्दगी को मुकम्मल करती है। मुकम्मल जिन्दगी में भी बहुत कुछ ऐसा हुआ होता है जिसे बदलना चाहते हैं, कुछ बुरी यादों को मिटाना चाहते हैं, कुछ बिगड़ा हुआ सँवारना चाहते हैं। काश जैसा हुआ, अगर वैसाना हुआ होता तो जिन्दगी कितनी खूबसूरत होती है। ये जानते हुए भी कि न तो गुजरा हुआ वक्त लौटकर आता है और न ही बीते हुए वक्त में जाना मुमकिन है। सिर्फ खट्टे-मीठे अनुभवों का कॉकटेल भर हमारी स्मृतियों में रह जाता है। इसी के साथरह जाती है अनगिनत शिकायतें, खुद से, हालातों से, रूढ़ीवादी समाज से, फरेबी लोगों से। अन्तिम सत्य यही है कि जीवन का अंत होता है, शिकायतों का कोई अंत नहीं है।’’
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